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Saturday, April 25, 2020

महर्षि मनु के मांसाहार के समर्थक थे या विरोधी?

 स्वामी सत्यानंद महाराज 'सत्य'
 दार्शनिक एवं प्रवचन कर्ता
संस्थापक - विश्व हिंदू सत्य शोधक मिशन 
नेट ,पी.एच.डी., एम. ए.( दर्शनशास्त्र, इतिहास, हिन्दी साहित्य, राजनीति विज्ञान) डी. एड.


क्रांतिकारी: शोध पत्र
( इस शोधपत्र का उद्देश्य हिंदू समाज को अपने धर्म-दर्शन-इतिहास के यथार्थ ज्ञान से अवगत करवाना है, न कि किसी की भावना को ठेस पहुँचाना या वाद- विवाद करना!  सभी विवाद केवल सिविल न्यायालय, सारंगपुर, जिला- राजगढ़ (ब्यावरा) MP  में ही मान्य होंगे!) 

हिंदू ( ब्राह्मण)  कानून या आचरण या धर्म की सर्वमान्य पुस्तक- मनुस्मृति है! जब हम मनुस्मृति को पढ़ते हैं, तब हमें उसमें हिंदुओं ( द्विजों ) को मांसाहार  करना चाहिए या नहीं, इस विषय पर परस्पर विरोधी श्लोक दिखाई देते हैं! इन्हें देखकर आम पाठक तो क्या बड़े- बड़े विद्वान भी आश्चर्यचकित हो जाते हैं? बेचारा भोला-भाला हिंदू किसे सच  माने???

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हम जब माँ के गर्भ में होते हैं, तब हमें अपनी माता के खून या रक्त से ही पोषण मिलता है! मानवजाति आदिम सभ्यता से ही  सर्वभक्षी रही है, जैसे- जैसे मनुष्य सभ्य होने लगा वैसे-वैसे खान-पान के नियमों का निर्धारण होने लगा! और कुछ चीजों को खाना पाप- पुण्य पवित्र -अपवित्र घोषित करने लगा!!

चूंकि आदि मानव मांसाहारी था, वह जब सभ्य हुआ तब वह अपने खान- पान की चीजों को अपने कल्पित देवी- देवताओं या ईश्वर को चड़ाने  या भेंट करने लगा! यहीं से बलिप्रथा का जन्म हुआ, जो आज भी विश्व समाज में किसी न किसी रूप में प्रचलित है!

हमारे ब्राह्मण धर्म में भी पशु बलिप्रथा की हमारी सनातन परम्परा है, हमारे सारे शास्त्र इसका समर्थन करते हैं, मगर जब भारत में जैन धर्म और बौद्ध धर्म ने बलिप्रथा का घोर विरोध किया, तब हमें मजबूरी में शाकाहारी बनना पड़ा और शास्त्रों में पशुबलि और मांसाहार के विरोध में श्लोक जोड़ने पड़े!!

इतना सब होने के बावजूद कश्मीरी ब्राह्मण, बंगाली ब्राह्मण, उड़ीसा का ब्राह्मण और कोंकणी या चित्तपावन ब्राह्मण मांसाहारी ही रह गया!!

आपको आश्चर्य होगा कि आधुनिक युग में हिंदू या ब्राह्मण धर्म के सबसे बड़े प्रचारक स्वामी विवेकानंद जी ( बंगाली कायस्थ) और उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस( बंगाली ब्राह्मण), हिंदुत्व की आधुनिक फासीवादी नाजीवादी दक्षिणपंथी विचारधारा के जनक  सावरकर जी ( चित्तपावन महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण) और भारतरत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (ब्राह्मण) देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ( कश्मीरी ब्राह्मण) ये सभी ब्राह्मण देवता मांसाहारी थे!

ब्राह्मण विद्वान शास्त्रों में उल्लेखित मांसाहार संबंधी श्लोकों पर  दो भागों में बंटे हुए हैं, कुछ विद्वान शास्त्रों में आए बलिप्रथा या मांसाहार के समर्थक श्लोकों को मूल श्लोक मानते हैं और कुछ विद्वान या तो इनके अर्थ बदल देते हैं या फिर प्रक्षिप्तवाद ( बाद की मिलावट) कहकर  वाममार्गीयों,  वामपंथियों, मुगलों, मुसलमानों या अंग्रेजों के मत्थे सारा दोष मढ़ देते   हैं!!??

किसी प्रथा के प्रचलन के बाद ही उसका विरोध या खंडन संभव है!

हमारी इसी बात का समर्थन करते हुए मनुस्मृति के  महान अनुशीलन या अनुसंधान कर्ता आर्यसमाजी विद्वान डॉ प्रो सुरेन्द्र कुमार पूर्व कुलपति गुरूकुल  कांगड़ी  लिखते हैं-

" विधान मौलिक और खंडन उसकी प्रतिक्रिया में होता है! " मनुस्मृति का पुनर्मुल्यांकन पृ-95

" किसी बात के अस्तित्व के बाद ही उसका खंडन हो सकता है, इस ( नियोग प्रथा के) खंडन से यह स्पष्ट है  कि इससे पूर्व यह मान्यता प्रचलित थी! " मनुस्मृति अध्याय 9 पृ- 759

डॉ सुरेन्द्र कुमार नियोग प्रथा का खंडन करने वाले श्लोकों को बाद की मिलावट मानते हैं, मगर यही सिद्धांत वे बलिप्रथा या मांसाहार के खंडन परक श्लोकों पर लागू नहीं करते हैं क्यों? इसका कारण है उनके (या मेरे प्रथम) गुरू महर्षि दयानंद सरस्वती जी गुजराती ब्राह्मण होने के कारण शाकाहारी थे, अतः शास्त्रों में आए मांसाहार या बलिप्रथा समर्थक श्लोकों को उन्होंने वाममार्गीयों के माथे मढ़ दिये!!! यदि महर्षि दयानंद जी बंगाली ब्राह्मण होते, तब  ये मांसाहार समर्थक सारे श्लोक मूल श्लोक बन जाते और मांसाहार या बलिप्रथा के विरोधी श्लोकों को जैनियों-बौद्धों  या शाकाहारियों के माथे मढ़ देते!!

हम जिस देश काल परिस्थिति में रहते हैं, वैसे ही चश्में से हम धर्म-दर्शन- इतिहास की व्याख्या करते हैं! बुद्धिमान पाठक समझ ही गए होंगे क्या सच है? क्या झूँठ है?

आइए पहले  हम मांसाहार  या बलिप्रथा के समर्थक श्लोकों पर विचार करें और बाद में विरोधी श्लोकों पर चिंतन करते हैं!

1   मांसाहार, शराब और सेक्स  मनुष्य की स्वभाविक प्रवृत्ति है - महर्षि मनु

"न मांस खाने में कोई दोष है, न शराब पीने में और न किसी के साथ मैथुन करने में ही बुराई है, यह प्राणियों (मनुष्यों) का  स्वभाव ही है, किंतु इनका त्याग करना महान फल देने वाला है! अत: इन्हें त्याग देना चाहिए! " 56/5 मनुस्मृति  पृ 424 देखिए-

न मांस भक्षणए दोषो न मद्धये न च मैथुने!
प्रवृत्तिरेषा भूतानाम् निवृत्तिस्तु महाफला!! 56/5

मनु महाराज बड़ी मनोवैज्ञानिक बात कहते हैं, मानवजाति स्वभाव से ही शबाब, कबाब और शराब की दिवानी है, इसी कारण धरती पर ऐश करने के बाद उसे स्वर्ग या जन्नत  में भी अप्सराएँ, हूरें, शराब की नदियाँ और तरह-तरह के  कबाब या मांस चाहिए!

मनु महाराज कहते हैं कि जैनियों- बौद्धों ने सारा मजा किरकिरा कर दिया! संयम से रहो या फिर इन सबको त्याग दो तो और भी महाफल मिलेगा!!!??

2  हिंदुओं के लिए पड़ियन और रोहू मछली खाना धर्म है - महर्षि मनु
हव्य और कव्य के लिए समर्पित पाठिन और रोहू मछलियाँ खा लेनी चाहिए! राजीव, सिंहतुंड और सब काँटेदार मछलियों को भी इस विधि से खा लेना चाहिए! "16/5 मनुस्मृति पृ -413 देखिए-
पाठीन रोहिता वाद्धयौ हव्य कव्ययो: !
राजीवान्सिंहतुंडाश्च सशल्कांश्चैव सर्वश: !! 16/5 मनुस्मृति

3 यज्ञ के लिए पशुओं और पक्षियों को मारना धर्म है- महर्षि मनु
"ब्राह्मणों को यज्ञ के लिए उत्तम पशुओं और पक्षियों को मार लेना चाहिए और सेवकों के पालन-पोषण के लिए मार लें प्राचीन काल में महर्षि  अगस्त्य ने भी ऐसा ही किया था!" 22/5 मनुस्मृति,पृ -415 देखिए-

यज्ञार्थ ब्राह्मनैर्वध्या: प्रशस्ता मृग पक्षिण: !
भृत्यानाम् चैव वृत्यर्थ मगस्त्यो ह्याचरत्पुरा!! 22/5 मनुस्मृति

"क्योंकि पहले भी यज्ञों में और ब्राह्मण- क्षत्रियों के संयुक्त यज्ञानुष्ठानो में भक्ष्य( हलाल) कहे गये पशु और पक्षियों के पुरोडाश- यज्ञ के लिए निर्मल अन्न या हविष्यान्न  बने हैं! 23/5 मनुस्मृति पृ- 415

4  भक्ष्य ( हलाल) प्राणियों  ( पशु-पक्षियों) को खाना  पाप नहीं है - महर्षि मनु

 " खाने का अधिकारी मनुष्य भक्ष्य( शास्त्रों द्वारा अनुमोदित) प्राणियों को प्रतिदिन खाते हुए भी किसी पाप का भागी या दोषी नहीं होता, क्योंकि खाने के लिए और उनको खाने वालों को परमात्मा ने ही बनाया है!" 30/5 मनुस्मृति देखिए-

नात्ता दुष्यत्यदन्नाद्यान्प्राणिनो अहन्यहन्यपि!
धात्रैव सृष्टा ह्याद्याश्च प्राणिनोअत्तार  एव  च!! 30/5 मनुस्मृति  पृ- 416

यहाँ महर्षि मनु बड़ी वैज्ञानिक बात कहते हैं, एक दूसरे को खाने वाले  या कौन किसे खाएगा ?, यह खाद्य श्रृंखला तो प्रकृति या परमात्मा ने बनाई! यदि एक प्राणी द्वारा दूसरे प्राणी को खाना पाप या अधर्म होता, तब परमात्मा ऐसी खाद्या श्रृंखला बनाता ही क्यों जिसमें एक प्राणी को दूसरे को खाना पड़े!!!??

5  'देव विधि' से मांस खाना पुण्य है- महर्षि मनु
"यज्ञ के लिए मांस का खाना, यह ' देव विधि' (देवताओं का तरीका) मानी गयी है, इससे भिन्न विधि से मांस खाना तो ' राक्षस विधि' कही गयी है! " 31/5 मनुस्मृति पृ- 417 देखिए-

यज्ञाय जग्निधर्मान्सस्येत्येष दै वो विधि: स्मृत: !
अतोअन्यथा प्रवृत्तिस्तु राक्षसो विधि रुच्यते!! 31/5  मनुस्मृति

जैसे मुसलमान हलाल  मांस ही खाते है, अल्लाह को समर्पित करने के बाद! वैसे ही मनु महाराज कहते हैं  कि हिंदूओं (आर्यों) पहले यज्ञ या ईश्वर को समर्पित कर परमात्मा की प्रसाद स्वरूप मांस खाओ, यही देवताओं या धार्मिक लोगों का तरीका है, बाकि तरीके राक्षसी हैं! अधर्म है!!पाप है!!

6 देवताओं और पितरों को अर्पित करके मांस खाना पुण्य है! - महर्षि मनु
" खरीदकर अथवा स्वयं मारकर मांस तैयार करके अथवा दूसरे के द्वारा भेंट किये गये मांस को देवताओं और पितरों को अर्पण करके खाने में मनुष्य दोषभागी नहीं होता! " 32/5 मनुस्मृति पृ- 417 , देखिए-

कृत्वा स्वयं वाअप्युत्पाद्य परोपकृतमेव वा !
देवानिपतृश्चार्चयित्वा खादन्मांसं न दुष्यति!! 32/5 मनुस्मृति

7 मंत्रों से पवित्र किये बिना मांस खाना पाप है - महर्षि मनु
" ब्राह्मण को चाहिए कि कभी भी मंत्रों से पवित्र न किये पशु मांस को न खाए! सनातन विधि में आस्था रखकर मंत्रों से पवित्र किये गये मांसों को खाये! "36/5 मनुस्मृति  पृ- 417

8 जो मनुष्य श्राद्ध या मधुपर्क में मांस नहीं खाता, वह महापापी है! - महर्षि मनु
" जो मनुष्य यथा विधि श्राद्ध या मधुपर्क में समर्पित मांस को नहीं खाता है, मरकर इक्कीस जन्मों तक पशुओं का जन्म पाता है! " 35/5 मनुस्मृति पृ- 417

 नियुक्तस्तु यथा न्यायं यो मांसं नात्ति  मानव:!
स प्रेत्य पशुतां  याति  संभवानेक विंशतिम्!! 35/5 मनुस्मृति पृ- 417

 9 यज्ञ के लिए पशु हत्या करना, हिंसा नहीं 'अहिंसा' ही है ! - महर्षि मनु
"ब्रह्मा (ईश्वर) ने स्वयं पशुओं को यज्ञ के लिए ही बनाया और यज्ञ सबके कल्याण के लिए है, इस कारण से यज्ञ में 'पशु' आदि प्राणियों की हिंसा करना' 'अहिंसा' ही है! " 39/5 मनुस्मृति पृ- 418 देखिए-

यज्ञार्थ पशव: सृष्टा: स्वयमेव स्वयंभुवा!
यज्ञश्च भूत्यै सर्वस्य तस्माद्यज्ञे  वधोअवध : !! 39/5 मनुस्मृति

यही बात गीता में भगवान श्रीकृष्ण जी अर्जुन को समझाते हैं कि आत्मा को काटा या मारा नहीं जा सकता, अत: धर्म के लिए युद्ध में अपने परिवार या रिश्तेदारों या दुश्मनों की हिंसा या हत्या करना पाप नहीं, पुण्य है!!
10 यज्ञ के लिए पशुओं को काटना पुण्य है, क्योंकि ऐसा करने से पशुओं को पशु योनि से जल्दी मुक्ति मिल जाती है! - महर्षि मनु

" औषधियाँ, पशु, वृक्ष, तिर्यक् योनि वाले सांप, कछुए आदि तथा पक्षी यज्ञ के लिए मृत्यु को प्राप्त होकर फिर उद्धार या उत्तम योनि को प्राप्त करते हैं! " 40/5 मनुस्मृति पृ- 418

" वेद के रहस्य को जानने वाला द्विज (ब्राह्मण) ऊपर वर्णित ( मधुपर्क में, यज्ञ में, श्राद्ध में और देव कर्म में 41/5) इन अवसरों में पशुओं की हिंसा करके अपने को और पशु को उत्तम गति प्राप्त कराता  है !" 42/5 मनुस्मृति पृ 419

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